क्या फरमाते हैं उलमा ए दीन इस बारे में कि ज़्यादा तर जाहिलों को तजवीद के क़वानीन (Terms of Quran reading & recitation) से इनकार है और वह उसे हक नहीं जानते।
जवाब:
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ
तजवीद क़ुरआन शरीफ़, हदीस शरीफ़ और इज्मा ए सहाबा से साबित और हक़ है। अल्लाह पाक ने क़ुरआन मजीद में इरशाद फरमाया:
وَرَتِّلِ الْقُرْاٰنَ تَرْتِیْلًا (سورۃ المزمل: ۵)
तर्जमा: और क़ुरआन खूब ठहर ठहर कर पढ़ो।
उसे बिल्कुल नाहक बताना कुफ़्र है। (अल्लाह की पनाह) हां जो ना जानने की वजह से किसी क़ायदे पर इंकार करे वह उसकी जहालत है, उसे बताना चाहिए।
(Fatawa Razaviyya Vol. 6 Page: 77)
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